एक अरसे से है चला आ रहा
कैसा ये खेल अनोखा है
युद्ध भूमि पे घटित जो होता
बस उसका एक झरोखा है ||
भारत के गुप्त वंश में जन्मा
कहा गया इसको चतुरांग
फ़ैल गया संपूर्ण विश्व में
दिया युद्धनीति का ज्ञान ||
चौसठ खानो की युद्धभूमि ये
सेना है कूच को प्रतिपल तैयार
बस विनाश नहीं होता इसमें
योग्यता के खुलते हैं द्वार ||
हो तुम अधीरथी या महारथी
चाहें शूरवीर या चक्रवर्ती
सोच नहीं जो तीव्र तुम्हारी
संकट में होगे हर बारी ||
आओ इस खेल की कुछ बात बताऊँ
इसके योद्धाओं से तुमको मिलवाऊं
बस चपल रहना है हरपल तुमको
स्वयं दिखेगा द्वार सभीको ||
घुड़सवार और पैदल सैनिक
हैं अग्रिम हमले को तैयार
ढाई पे घुड़सवार का भाला
गजदल अपने महावतों संग
हैं शत्रु के सीने का भार
युद्ध भूमि को कपा देती है
इनकी अकस्मात चिंघाड़ ||
ऊंटों की तो बात निराली
करते हैं तिरछा प्रहार
पैनी जो नजर न रही तुम्हारी
खुद खोलोगे पराजय का द्वार ||
इस भीषण युद्ध के परिसर में
रखीं हैं दो तीखी तलवार
जब जब निकली हैं ये म्यान से
सिहर गए हैं नभ पाताल ||
शक्ति की इनके नहीं है सीमा
न रोक टोक बस बल प्रशस्त
हैं दसों दिशा में तांडव इनका
बस एक लक्ष्य, शत्रु हो निरस्त ||
राजा के हैं महारथी ये
जब जब निकले उड़ते अबीर
हड़कंप मचा दें शत्रु दल में
कहते हैं इनको वज़ीर ||
सेना का है बस एक लक्ष्य
सिंहासन सुरक्षित, हो शत्रु पस्त
रणनीति जो हो सही तुम्हारी
नहीं झुकेगा राज्य ध्वज ||
जीवन भी तो यह रणभूमि है
चलता रहता है संघर्ष
खत्म हुआ जो संघर्ष तुम्हारा
बस वही तुम्हारी मृत्यु का क्षण ||
हार नहीं बस मानो तुम
एक रणनीति रखो तैयार
होगा आकाश में उदय तुम्हारा
जीतोगे हर बाज़ी हर बार ||
यह केवल एक खेल नहीं है
है समस्त जीवन का सार
साथ लड़े जो अपनों के संग तुम
होंगे विजय प्राप्ति के पूरे आसार ||
—-शिखर चतुर्वेदी