समय से युद्ध
बरसो से जो कहना था
शायद वो कह न पाया हूँ
लेकिन अब दुनिया को अपने
अलफ़ाज़ सुनाने आया हूँ ||
देख के क्या तुम सोचोगे
पड़ता मुझको अब फर्क नहीं
केवल खुद कि सोचूं मैं
इतना भी मैं खुदगर्ज नहीं ||
चट्टानों के सीने में मैं
एक सुराख बनाने आया हूँ
निर्बल हुए लहू को मैं
सशक्त बनाने आया हूँ ||
इन तूफानों में घुस के मैं
ऐसी ज्वाला भड़काऊंगा
इंद्रदेव की बिजली से
हर चोटी पे ध्वज फेहरा दूंगा
मुझको तुम तनिक भी छेड़ो न
दुनिया की नीव हिला दूंगा ||
लड़ने से मैं नहीं डरता हूँ
पूरे जग से लड़ जाऊँगा
तुम चिंगारी तो भड़काओ
मैं धर से नभ देहकाऊँगा ||
तुम होगे कोई शूरवीर
मैं भी एक रथी निराला हूँ
होगे तुम कोई अग्नि कुंड
मैं भी एक प्रचंड ज्वाला हूँ ||
लहू के बहने पे खेद नहीं
बस इसका बहना व्यर्थ न हो
योद्धा कोई नहीं यहाँ
जिस्सा मुझमे सामर्थ्य न हो ||
नस नस में जो भड़क रहा
उस शोले का तुम्हे अनुमान कहाँ
जीवन ने मुझे जो सीखा दिया
है तुम्हे अभी वो ज्ञान कहाँ !!
ह्रदय का है ये खेल सभी
मष्तिष्क तो बस एक यन्त्र यहाँ
तुम बुद्धि से जो दो कदम बढ़े
मैं अंतर्मन से वो नाप रहा !!
आओ तो फिर शुरू करें
युद्ध बहुत ये लम्बा है
योद्धा के धैर्य परिक्षण का
तुम्हारा बहुत पुराना धंधा है ||
वैसे तो तुम्हे कोई न हरा सका
ऐसा अस्तित्व निराला है
इस अनंत से उस अनंत
बस काल चक्र की धारा है !!
लेकिन प्रयासों पर मेरे
तुम अपना शीश नवाओगे
देता हूँ मैं एक वचन
परिणाम देख मुस्काओगे ||
जा रहा तुम्हारी धारा में
न सोच की इसमें बह जाऊँगा
हर क्षण के सतत संघर्ष से
अपनी शक्ति को और बढ़ाऊंगा !!
अपने युग विशेष की धारा को
ऐसी एक राह दिखाऊंगा
हर काल युग की सीमा लांघ
खुद अपनी नियति बनाऊंगा ||||
— शिखर चतुर्वेदी
मुझको तुम तनिक भी छेड़ो न
दुनिया की नीव हिला दूंगा ||
लड़ने से मैं नहीं डरता हूँ
पूरे जग से लड़ जाऊँगा
तुम चिंगारी तो भड़काओ
मैं धर से नभ देहकाऊँगा ||
तुम होगे कोई शूरवीर
मैं भी एक रथी निराला हूँ
होगे तुम कोई अग्नि कुंड
मैं भी एक प्रचंड ज्वाला हूँ ||
लहू के बहने पे खेद नहीं
बस इसका बहना व्यर्थ न हो
योद्धा कोई नहीं यहाँ
जिस्सा मुझमे सामर्थ्य न हो ||
नस नस में जो भड़क रहा
उस शोले का तुम्हे अनुमान कहाँ
जीवन ने मुझे जो सीखा दिया
है तुम्हे अभी वो ज्ञान कहाँ !!
ह्रदय का है ये खेल सभी
मष्तिष्क तो बस एक यन्त्र यहाँ
तुम बुद्धि से जो दो कदम बढ़े
मैं अंतर्मन से वो नाप रहा !!
आओ तो फिर शुरू करें
युद्ध बहुत ये लम्बा है
योद्धा के धैर्य परिक्षण का
तुम्हारा बहुत पुराना धंधा है ||
वैसे तो तुम्हे कोई न हरा सका
ऐसा अस्तित्व निराला है
इस अनंत से उस अनंत
बस काल चक्र की धारा है !!
लेकिन प्रयासों पर मेरे
तुम अपना शीश नवाओगे
देता हूँ मैं एक वचन
परिणाम देख मुस्काओगे ||
जा रहा तुम्हारी धारा में
न सोच की इसमें बह जाऊँगा
हर क्षण के सतत संघर्ष से
अपनी शक्ति को और बढ़ाऊंगा !!
अपने युग विशेष की धारा को
ऐसी एक राह दिखाऊंगा
हर काल युग की सीमा लांघ
खुद अपनी नियति बनाऊंगा ||||
— शिखर चतुर्वेदी
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