Saturday, 25 April 2020

————————शतरंज —————

                                                    

एक अरसे से है चला आ रहा 
कैसा ये खेल अनोखा है 
युद्ध भूमि पे घटित जो होता 
बस उसका एक झरोखा है ||  

भारत के गुप्त वंश में जन्मा 
कहा गया इसको चतुरांग 
फ़ैल गया संपूर्ण विश्व में 
दिया युद्धनीति का ज्ञान  || 

चौसठ खानो की युद्धभूमि ये 
सेना है कूच को प्रतिपल तैयार
बस विनाश नहीं होता इसमें 
योग्यता के खुलते हैं द्वार || 

हो तुम अधीरथी या महारथी 
चाहें शूरवीर या चक्रवर्ती 
सोच नहीं जो तीव्र तुम्हारी 
संकट में होगे हर बारी ||

आओ इस खेल की कुछ  बात बताऊँ 
इसके योद्धाओं से तुमको मिलवाऊं 
बस चपल रहना है हरपल तुमको 
स्वयं दिखेगा द्वार सभीको ||

घुड़सवार और पैदल सैनिक 
हैं अग्रिम हमले को तैयार 
ढाई पे घुड़सवार का भाला 
एक गलती पे सैनिक की तलवार || 

                                       

       

गजदल अपने महावतों संग 
हैं शत्रु के सीने का भार 
युद्ध भूमि को कपा देती है 
इनकी अकस्मात चिंघाड़ ||  

ऊंटों की तो बात निराली 
करते हैं तिरछा प्रहार 
पैनी जो नजर न रही तुम्हारी 
खुद खोलोगे पराजय का द्वार || 

इस भीषण युद्ध के परिसर में 
रखीं हैं दो तीखी तलवार 
जब जब निकली हैं ये म्यान से 
सिहर गए हैं नभ पाताल || 

शक्ति की इनके नहीं है सीमा 
न रोक टोक बस बल प्रशस्त 
हैं दसों दिशा में तांडव इनका 
बस एक लक्ष्य, शत्रु हो निरस्त ||

राजा के हैं महारथी ये 
जब जब निकले उड़ते अबीर 
हड़कंप मचा दें शत्रु दल में
कहते हैं इनको वज़ीर || 

सेना का है बस एक लक्ष्य 
सिंहासन सुरक्षित, हो शत्रु पस्त 
रणनीति जो हो सही तुम्हारी 
नहीं झुकेगा राज्य ध्वज || 

जीवन भी तो यह रणभूमि है 
चलता रहता है संघर्ष 
खत्म हुआ जो संघर्ष तुम्हारा 
बस वही तुम्हारी मृत्यु का क्षण || 

हार नहीं बस मानो तुम 
एक रणनीति रखो तैयार 
होगा आकाश में उदय तुम्हारा 
जीतोगे हर बाज़ी हर बार || 

यह केवल एक खेल  नहीं है 
है समस्त जीवन का सार 
साथ लड़े जो अपनों के संग तुम
होंगे विजय प्राप्ति के पूरे आसार ||   

                                                   
                                                   —-शिखर चतुर्वेदी 


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